Bihar 65% Reservation Rejected by Patna High Court - Niyojit Teacher - BPSC TRE - HM

Bihar 65% Reservation Rejected by Patna High Court

बिहार जाति आधारित सर्वे द्वारा लागू 65 फीसदी आरक्षण को पटना हाईकोर्ट ने किया रद्द।

मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति हरीश कुमार ने 2023 में बिहार विधानमंडल द्वारा लाए गए संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया।  
  • न कोई स्टडी, न आंकलन; सीधे बढ़ा दिया 65% आरक्षण। 
  • बिहार सरकार द्वारा आरक्षण बढ़ाने के फैसले को पटना हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है। 
  • महागठबंधन की सरकार में 50 फीसदी आरक्षण को बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया गया था। 
  • इंदिरा साहनी केस की दलील पर गिरा बिहार सरकार का आरक्षण

हाई कोर्ट के इस फैसले के पीछे क्या दलील दी गई, किन तर्क को आधार बनाकर पटना हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया, आइए उसे समझते हैं।

इंदिरा साहनी केस की दलील पर गिरा बिहार सरकार का आरक्षण

याचिकाकर्ता के वकील गौरव ने बताया कि राज्य में जो सरकारी शिक्षण संस्थान में 49.50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान रहा है। यह सामाजिक और आर्थिक तबके के आधार पर तय होता है। 1992 के इंदिरा साहनी एवं अन्य बनाम केंद्र सरकार केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जो भी सरकारें हैं वह 50 फीसदी के अंदर ही आरक्षण ला सकती हैं। उसमें देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा था कि सरकारी नौकरी या शिक्षण संस्थान में कुल वैकेंसी का 50 फीसदी के अंदर ही आरक्षण दिया जा सकता है। लेकिन राज्य ने दो कानून लाए, एक शिक्षण संस्थान में देने के लिए और दूसर रोजगार में देने के लिए। इसमें राज्य सरकार ने 49.5 फीसदी आरक्षण को बढ़ाकर 75 फीसदी कर दिया। इसी को आधार बनाकर बिहार सरकार के इस फैसले को पटना हाई कोर्ट में चैलेंज किया गया। याचिका में कहा गया कि यह कानून आर्टिकल 14 और 16 (बराबरी का मौलिक अधिकार) का उल्लंघन करती है। हमने अपनी याचिका में इंदिरा साहनी केस और कुछ साल पहले मराठा आरक्षण केस में आए फैसले को आधार बनाया। इन दोनों फैसलों में सुप्रीम कोर्ट न कहा है कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है
  • पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की बेंच ने जजमेंट सुनाया है
  • कहा गया, 75 फीसदी आरक्षण आर्टिकल 14 और 16 का उल्लंघन है।

हाईकोर्ट ने बिहार के उस कानून को रद्द कर दिया, जिसमें पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया गया था। कोर्ट ने बिहार पदों और सेवाओं में रिक्तियों का आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 और बिहार (शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 को अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत समानता खंड का उल्लंघन बताते हुए रद्द कर दिया है।

मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति हरीश कुमार ने 2023 में बिहार विधानमंडल द्वारा लाए गए संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया। बता दें कि नीतीश कुमार जब महागठबंधन की सरकार में सीएम थे, तब राज्य सरकार ने एससी, एसटी, ओबीसी और पिछड़े वर्गों के लिए 65 फीसदी आरक्षण कर दिया था, जिसे अब हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है. इसके बाद से अब लोगों को जाति आधारित 65 फीसदी आरक्षण नहीं मिलेगा।

आरक्षण के मामले में गौरव कुमार सहित कुछ और याचिकाकर्ताओं ने याचिका दायर की थी, जिसपर 11 मार्च को सुनवाई होने के बाद पटना हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे आज सुनाया गया. चीफ जस्टिस के.वी चंद्रन की खंडपीठ ने गौरव कुमार और अन्य याचिकाओं पर लंबी सुनवाई की थी, जिसके बाद आज यानी कि 20 जून को हाईकोर्ट का फैसला आया है।


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